Jaisalmer / Bikaner: राजस्थान के दो गर्म और शुष्क जिलों बीकानेर और जैसलमेर में पिछले वर्षों में किसानों के द्वारा केसर (Saffron) उत्पादन करने की खबरें सामने आती रही है, केसर की खेती (Saffron Cultivation) को लेकर चौंकाने वाली बात सामने आई है।
दरअसल इन किसानों को केसर के नाम पर कुसुम ( Safflower) का बीज बेचा जा रहा है और यंहा के किसान जानकारी के अभाव में कुसुम (Safflower) को ही केसर (Saffron) समझकर अपनी मेहनत और वक्त जाया कर रहे है। जैसलमेर- बीकानेर के अलावा झुंझुन और कोटा के किसान भी ठगे जा रहे है।
केसर की खेती (Saffron Cultivation) के बारे में जानकारी देते हुवे स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर (Swami Keshwanand Rajasthan Agricultural University) के निदेशक (अनुसंधान) डाॅ. एस. एल. गोदारा (Dr. S.L. Godara) बताते है कि राजस्थान जैसे गर्म प्रदेश में केसर (Saffron) उगाना संभव नहीं है। केसर का उत्पादन क्षेत्र भारत मे जम्मू कश्मीर के अलावा स्पेन, इटली, ईरान, पाकिस्तान, चीन के ठंडे प्रदेश है।

केसर की खेती (Saffron Cultivation) पौधे की कंद से की जाती है तथा इसमें हर दूसरे दिन पानी डालने की आवश्यकता होती है। इसके पौधे का फूल अक्टूबर में आता है। पौधे के फूल जामूनी रंग के होते है तथा इसके हर फूल में तीन वृतिकाएँ (stigma) होती हैं।ये लाल रंग की होती हैं। केसर की फसल के 1 लाख 50 हजार फूलों से लगभग एक किलो केसर प्राप्त की जाती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 2.5 से 3 किलो सूखी केसर का उत्पादन होता है, जिसकी कीमत एक से तीन लाख रुपये तक हो सकती है।
केसर और कुसुम में क्या अंतर है?
कुसुम की खेती (Safflower Cultivation) बीज द्वारा की जाती है। इसका बीज सफेद रंग का होता है तथा शुष्क क्षेत्र में भी इसका आसानी से उत्पादन हो जाता है। इसके पोधों की ऊंचाई 3 से 5 फुट होती है। इसके फूल का आकार बड़ा होता है व बहुत सारी पँखुङियाँ होती हैं। जबकि केसर की खेती (Saffron Cultivation) कंद द्वारा होती है और ये शुष्क और गर्म प्रदेश में नहीं हो सकता।
कुसुम (Safflower) का वैज्ञानिक नाम कारथेमस है। इससे प्राप्त तेल एवं रंग का उपयोग साबुन, वार्निश व पेंट बनाने में होता है।
केसर के एक फूल पर केवल तीन ही पराग आते हैं।वही कुसुम के पौधे में कई पराग आते हैं।केसर का फूल जमीन से कुछ ही इंच की ऊंचाई पर विकसित होता है।जबकि कुसुम भूमि से कई फुट की ऊंचाई तक बढ़ जाता है।
केसर की खेती को लेकर किसानों को सावधान रहने की जरूरत
प्रोफेसर गोदारा कहते है कि विक्रेता किसानों को केसर के बदले कुसुम का बीज बेच रहे है, जिसको बाद में बेचना मुश्किल हो जाता है। केसर की तुलना में कुसुम का बाजार मूल्य बहुत कम है और किसान को घाटा उठाना पड़ता है।
अतः सभी किसान भाइयों से निवेदन है कि इस तरह के किसी भी झांसे में ना आए और अगर आपको केसर की खेती करनी है, तो अपने क्षेत्र के कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क करें और उनकी सलाह के अनुसार ही इसकी खेती करें और किसी भी प्रकार के छल कपट से बचें।
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