Shardiya Navratri 2020: मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है। इसलिए सर्व इच्छाओं की पूर्ति करने वाली होने से परम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति के लिए नौ दिन तक (navratri 2020) उनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। सनातन धर्म का यह एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे उत्तर भारत के साथ-साथ गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है।इस बार नवरात्रि पितृ पक्ष की समाप्ति (17 सितंबर 2020 ) से ठीक एक माह बाद शारदीय नवरात्रि 2020 की शुरुआत (17 अक्टूबर 2020) होगी ।
दरअसल इस बार यानि 2020 में श्राद्ध खत्म होने के साथ ही अधिकमास लग जाएगा, इस कारण इसके बाद आने वाले त्यौहारों में देरी होगी। जानकारी के अनुसार करीब 160 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं।
इस वर्ष 2020 में शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri 2020) व्रत 17 अक्टूबर से शुरु होकर 25 अक्तूबर तक रहेंगे।जैसा की आप जानते हैं श्राद्ध खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि होती है और कलश स्थापना की जाती है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो रहा है। इस बार श्राद्ध समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा, जिसके चलते नवरात्रि 20-25 दिन आगे खिसक जाएंगी। इस साल दो अश्विनमास हैं। ऐसा अधिकमास होने के कारण हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, पांच महीने का होगा।
ऐसे समझें : क्यों हो रही ये देरी…
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी (Pandit Dayanand Shastri) के अनुसार वर्ष 2019 (यानि संवत 2076) में 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के अगले दिन से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो गई थी। जबकि इस बार वर्ष 2020 (यानि संवत 2077) में 2 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहे हैं, जिसकी अवधि 17 सितंबर तक रहेगी। पितृपक्ष की समाप्ति पर अधिकमास लग जाएगा। यह 28 दिन का होता है। इस अंतराल में कोई त्योहार नहीं मनाया जाता। इसलिए आमजन को पूरे एक महीने इंतजार करना पड़ेगा।
नवरात्र के देरी से आने के कारण इस बार दीपावली 14 नवंबर को रहेगी, जबकि यह पिछले साल 27 अक्टूबर को थी। अधिकमास होने के कारण 22 अगस्त को गणेशोत्सव के बाद जितने भी बड़े त्योहार हैं, वे पिछले साल की तुलना में 10 से 15 दिन देरी से आएंगे।
पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार अश्विन माह तीन सितंबर से प्रारंभ होकर 29 अक्टूबर तक रहेगा। इस बीच की अवधि वाली तिथि में 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक का समय अधिक मास वाला रहेगा। इस कारण 17 सितंबर को पितृमोक्ष अमावस्या के बाद अगले दिन 18 सितंबर से नवरात्र प्रारंभ नहीं होंगे।
बल्कि नवरात्र का शुभारंभ 17 अक्टूबर को होगा। देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को है। माह के अंत में देवउठनी एकादशी के होने से नवंबर व दिसंबर दोनों ही महीनों में विवाह मुहूर्त की कमी रहेगी, क्योंकि 16 दिसंबर से एक माह के लिए खरमास शुरू हो जाएगा। दरअसल इस वर्ष दो अश्विन माह होने से यह वर्ष विक्रम संवत्सर 2077 (यानि अंग्रेजी वर्ष 2020) 13 माह का रहेगा।
ऐसे करें नवरात्रि पूजन विधि
नौ दिन तक मनाएं जाने वाला यह नवरात्रि व्रत का पर्व माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की साधना के लिए बड़ा ही उत्तम समय माना जाता है। इसलिए माँ दुर्गा के साधक भक्त को चाहिए की वह प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया करके स्नानादि से निर्वत्त व शुद्ध होकर साफ़ एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्री माँ दुर्गा के मंदिर अथवा घर पर ही पूजा स्थल की साफ़ सफाई करें।
जानिए नवरात्रि में नौ रंगों का महत्व
नवरात्रि के समय हर दिन का एक रंग तय होता है। मान्यता है कि इन रंगों का उपयोग करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
प्रतिपदा- पीला द्वितीया- हरा तृतीया- भूरा चतुर्थी- नारंगी पंचमी- सफेद षष्टी- लाल सप्तमी- नीला अष्टमी- गुलाबी नवमी- बैंगनी
नवरात्रि पूजन के लिए माता की मूर्ति या तस्वीर पूजन स्थल पर स्थापित अवश्य कर ले। माँ को लाल चुनरी, वस्त्र आदि पहनाएं पूजा स्थल को रंग-बिरंगे फूलों से सजाएँ और माँ को भी सुंदर-सुंदर पुष्प अर्पित करें जिसमें लाल रंग के पुष्प जरूर शामिल करें।
ऋतु फल, मिठाइयां आदि माँ जगदम्बे को अर्पित करें । यदि नवरात्र का प्रथम दिन है तो नीचे दी गयी विधिनुसार कलश स्थापना करें।
घटस्थापना विधि (कलश स्थापना)
नवरात्रि में घर पर कैसे करें घटस्थापना, जानिए पौराणिक कलश स्थापना विधि ?
नवरात्रि के प्रथम दिन ही घटस्थापना की जाती है। जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है। घट स्थापना सामग्री:-
जल से भरा हुआ पीतल, चांदी, तांबा या मिट्टी का कलश, पानी वाला नारियल, रोली या कुमकुम, आम के 5 पत्ते, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा या चुनरी, लाल सूत्र/मौली, साबुत सुपारी, साबुत चावल और सिक्के, कलश ढकने के लिए ढक्कन और जौ
यह हैं पौराणिक कलश स्थापना विधि
कलश(घट) मूर्ति की दाईं ओर स्थापित करना चाहिए। सबसे पहले जहाँ कलश स्थापित करना है वहाँ पर किसी बर्तन के अन्दर मिटटी भर ले अथवा ऐसे ही जमीन पर मिटटी का ढेर बना कर उसे जमा दे। मिटटी का ढेर कुछ इस तरह से बनाये की उस पर कलश रखने के बाद भी आस-पास कुछ स्थान शेष रह जाएं। अब एक पीतल या मिटटी का कलश ले। कलश के ऊपर रोली अथवा कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं। और कलश की गर्दन पर मौली(कलावा) बांधें। इसके बाद उसमे थोड़ा गंगाजल डालकर बाकि शुद्ध पेयजल से भर दें। जल से भरे कलश के अंदर थोड़े से अक्षत (चावल), 2-4 दूर्वा घांस, साबुत सुपारी, और 1 या दो रुपए का सिक्का डालकर चारो ओर आम के 4-5 पत्ते लगाकर मिटटी या धातु के बने ढक्कन से ढक दें।
ढक्कन पर भी स्वस्तिक बनाये और उसके अंदर थोड़े चावल डालकर एक पानी वाला नारियल जिसके चारो को लाल रंग की चुनरी लिपटी हो, तिलक करें और स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं अब इस नारियल को चावलों से भरे ढक्कन के ऊपर रख दे और इस बात का विशेष ध्यान रहे कि कलश पर स्थापित किए जा रहे नारियल का मुख हमेशा अपनी ओर ही रखे चाहे आप किसी भी दिशा की ओर मुख करके पूजा करते हों। दीपक का मुख पूर्व दिशा की और रखे।
यदि शारदीय नवरात्र व्रत हो तो कलश के नीचे बची जगह पर अथवा ठीक सामने जौं बोने चाहिए। पूजन आरम्भ करने से पहले सभी देवी-देवताओं और अपने मस्तक पर तिलक(रोली, चन्दन या भस्म) अवश्य लगाना चाहिए। बिना तिलक लगाये पूजन नहीं करना चाहिए।
सर्वप्रथम गणेश भगवान की पूजा से आरम्भ करते हुए माँ भगवती का पूजन करें। माँ का बीज मंत्र( ॐ एम् ह्रीं क्लिं चामुण्डायै विच्चे ) बोलकर पूजा आरम्भ करें। माँ दुर्गा की प्रार्थना करके सबसे पहले कवच पाठ करें और उसके बाद अर्गला, कीलक और रात्रि सूक्त का पाठ पढ़ें। इनका पाठ कर लेने पर दुर्गा सप्तसती व श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करें। अंत में भगवान गणेश की आरती के साथ माँ अम्बे जी की आरती या दुर्गा माता की आरती करें। हर दिन एक कन्या का पूजन करें।
17 अक्टूबर से शुरू होंगे नवरात्र
इस साल 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखें जाएंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे। इसके साथ ही इस दिन से शारदीय नवरात्र 2020 शुरु हो जाएंगी।
मां दुर्गा के 9 रूप
मां दुर्गा के नौ रूपों में पहला स्वरूप ‘शैलपुत्री’ के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। दूसरे दिन मां के दूसरे स्वरूप ‘ब्रह्मचारिणी’ की पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा जी का तीसरा स्वरूप मां ‘चंद्रघंटा’ का है। तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व माना गया है। पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। स्कंदमाता अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। दुर्गा जी के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी और सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। मान्यता है कि सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। दुर्गा जी की आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। यह मनवांछित फलदायिनी हैं। दुर्गा जी के नौवें स्वरूप का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 पहला दिन : 17 अक्टूबर तिथि – शुक्ल प्रतिपदा शारदीय नवरात्रि 2020 का पहला दिन, मां शैलपुत्री को समर्पित होता है। इस वर्ष घट स्थापना और शैलपुत्री की आराधना शनिवार के दिन होने से इस दिन स्लेटी रंग के वस्त्रों का उपयोग करें और मां शैलपुत्री को चमेली के पुष्प अर्पित करें। साथ ही शैलपुत्री को कुट्टू और हरड़ का भोग लगाएं, इससे चंद्रमा बलवान होता है और भाग्य में वृद्धि होती है। यह देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 दूसरा दिन : 18 अक्टूबर तिथि – शुक्ल द्वितीया शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। इस वर्ष मां नवरात्रि का दूसरा दिन रविवार के दिन आएगा। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिए नारंगी रंग का उपयोग करें। नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें। माता ब्रह्मचारिणी की आराधना करें। इससे आपको स्फूर्ति और उल्लास का अनुभव होगा। मां ब्रह्मचारिणी का स्मरण कर माता को चमेली के फूल चढ़ाएं। दूध- दही और ब्राह्मी को माता के भोग में शामिल करें, इससे आपको मंगल से संबंधित दोषों से भी मुक्ति मिलेगी। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 तीसरा दिन : 19 अक्टबूर तिथि – तृतीया शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। 2020 शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन सोमवार है, इस दिन आपको सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए और मां चंद्रघंटा का स्मरण करना चाहिए। सफेद रंग शुद्धता व सरलता को दर्शाता है, सफेद रंग आत्मशांति एवं सुरक्षा का भी अनुभव करवाता है। देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण कर सफेद आसन बिछाकर माता दुर्गा को सफेद रंग के फूल अर्पित करना चाहिए। मां चंद्रघंटा को घर में बने शुद्ध प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप की आराधना से शुक्र की बाधाएं दूर होती हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 चौथा दिन : 20 अक्टूबर तिथि – चतुर्थी शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन माता के कुष्मांडा रूप की आराधना की जाती है। नवरात्रि 2020 के चौथे दिन मंगलवार है, इस दिन माता की आराधना के लिए लाल रंग का आसान बिछाएं और लाल रंग के वस्त्र धारण कर विधि – विधान से माता की आराधना करें। नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा को लाल रंग के फूल अर्पित करें और पेठे का भोग लगाएं। इससे आपकी कुंडली के सूर्य को बल मिलेगा और आप प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करेंगे। माँ कूष्माण्डा सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है।
शारदीय नवरात्रि 2020 पांचवा दिन : 21 अक्टूबर तिथि – पंचमी शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना की जाती है। वर्ष 2020 में नवरात्रि के पांचवें दिन बुधवार है, इस दिन गहरे नीले रंग के वस्त्र धारण करें और स्कंदमाता को लाल रंग के फूल चढ़ाएं। इसी के साथ माता स्कंद माता को चावल और अलसी का भोग लगाएं, इससे बुध ग्रह से जुड़े दोषों का नाश होगा और बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होगी। देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 छठवां दिन : 22 अक्टूबर 2020 तिथि – षष्ठी शारदीय नवरात्रि के छठवें दिन माता कात्यायनी की आराधना की जाती है, माता कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरुवार होने के कारण पीले रंग के वस्त्र धारणकर माता शक्ति की आराधना करें और देवी कात्यायनी का स्मरण करें। पूजा के दौरान माता कात्यायनी को लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं। विशेषकर गुलाब के पुष्प माता को प्रिय है, इसी के साथ उन्हें भोग के तौर पर हरी सब्जी और खोए से बनी मिठाई अर्पित करें। इससे गुरु ग्रह मजबूत होगा और आपकी कुंडली में अमृत समान प्रभाव डालेंगे।देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 सातवां दिन : 23 अक्टूबर तिथि – सप्तमी नवरात्रि के सातवें दिन माता पार्वती के सबसे भीषण रूप मां कालरात्रि की आराधना की जाती है। वर्ष 2020 में कालरात्रि का पूजन शुक्रवार के दिन किया जाएगा, इसलिए इस दिन हरे रंग का चुनाव करें और साधना के आसन सहित हरे वस्त्र धारण करें। इस दिन देवी की पूजा करते समय मां कालरात्रि का स्मरण करें और उन्हे रात रानी के पुष्प अर्पित करें। मां कालरात्रि को भोग के तौर पर कालीमिर्च, तुलसी और मीठे में खीर या हलवे का भोग लगाएं, माता के सातवें रूप की आराधना से आपको शनि के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सहायता मिलेगी। देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2020 आठवां दिन : 24 अक्टूबर तिथि – अष्टमी नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की आराधना की जाती है, माता महागौरी की आराधना सौभाग्य और उन्नति लेकर आती है।देवी महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। नवरात्रि 2020 के आठवें दिन शनिवार है, इस दिन हरे और नीले रंग के वस्त्र धारण करें और मां महागौरी का स्मरण करते हुए उन्हें सुंगधित फूल अर्पित करें। इसी के साथ मां महागौरी को साबूदाने से बनी खीर और तुलसी का भोग लगाएं। माता महागौरी की इस विधि से आराधना करने से अपको राहु जनित सभी दोषों से मुक्ति मिलेगी।
शारदीय नवरात्रि 2020 नौवां दिन 25 अक्टूबर तिथि – नवमी
नवरात्रि के नौवे दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है, मां सिद्धिदात्री की पूजा का क्रम इस बार रविवार को आ रहा है इस दिन मां सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए बैंगनी रंग के वस्त्र धारण करें। बैंगनी रंग भव्यता और राजसी ठाट – बाठ को दर्शाता है। साथ ही यह भक्तों को समृद्धि और संपन्न बनाने का कार्य भी करता है। नवरात्रि के नौवे दिन बैंगनी रंग के वस्त्र धारण कर मां सिद्धिदात्री का आह्वान करें और उन्हें रात रानी के पुष्प चढ़ाएं। माता सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के नौवे दिन आंवला और शतावरी का भोग लगाएं। मां सिद्धिदात्री की आराधना से केतु ग्रह के दोषों को दूर किया जा सकता है और उन्नति के पथ पर आगे बढ़ा जा सकता हैं। माँ सिद्धि दात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 2020 को शारदीय नवरात्रों का आरंभ 17 अक्टूबर , आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा. दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. घट स्थापना मुहूर्त का समय शनिवार, अक्टूबर 17, 2020 को प्रात:काल 06:27 से 10:13 तक है. घटस्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त प्रात:काल 11:44 से 12:29 तक रहेगा. आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए. शारदीय नवरात्र कब से कब तक—
- 17 अक्टूबर, 2020 – इस दिन घटस्थापना और नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जायेगी।
- 18 अक्टूबर, 2020 – नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाएगी।
- 19 अक्टूबर, 2020 – नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के चन्द्रघंटा स्वरूप की आराधना की जायेगी।
- 20 अक्टूबर, 2020 – नवरात्रि पर्व के चौथे दिन मां भगवती के देवी कुष्मांडा स्वरूप की उपासना की जायेगी।
- 21 अक्टूबर, 2020 – नवरात्रि के पांचवे दिन भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा की जायेगी।
- 22 अक्टूबर, 2020 – आश्विन नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा जायेगी।
- 23 अक्टूबर, 2020 – नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है।
- 24 अक्टूबर, 2020 – नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं।
- 25 अक्टूबर, 2020 – नौवें दिन भगवती के देवी सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्रि में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जायेगा व विजयदशमी भी मनाई जायेगी।
- 26 अक्टूबर, 2020 – इस दिन दुर्गा विसर्जन किया जायेगा ।