Gupt Navratri 2020 Date: इस वर्ष 22 जून 2020 से आर्द्रा नक्षत्र और सूर्य-चंद्र की उपस्थिति में गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होगी। जो 29 जून 2020 भड़ली नवमी तक चलेगी।
देवी भागवत के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि के दौरान साधक माँ काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ ध्रूमावती, माँ बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि यह गुप्त नवरात्रि तंत्र विद्या सीखने वाले और मां दुर्गा से मुंहमांगी मनोकामना करने वाले के लिए विशेष महत्व रखता है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष 22 जून 2020 से आर्द्रा नक्षत्र और सूर्य-चंद्र की उपस्थिति में नवरात्रि प्रारंभ होगी। जो 29 जून 2020 भड़ली नवमी तक चलेगी।
इस बार पंचमी और षष्ठी का योग रहेगा इसलिए नवरात्र का पारण 29 जून को किया जाएगा। उसके अगले दिन 23 जून 2020 को जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव भी मनाया जाएगा।
घट स्थापना
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्र के इन नौ दिनों में क्रम के अनुसार 22 जून 2020 को कलश सुबह 9:30 से 11 के बीच अभिजित मुहूर्त में स्थापित किया जा सकता है।
इस क्रम में 22 जून को शैलपुत्री, 23 जून को ब्रह्मचारिणी, 24 जून को चंद्रघंटा, 25 जून को कूष्माण्डा का पूजन किया जाएगा।
26 जून को स्कंदमाता और मां कात्यायनी दोनों का पूजन किया जाएगा। उसके बाद 27 जून को कालरात्रि, 28 जून को महागौरी और 29 जून 2020 को सिद्धिदात्री का पूजन किया जाएगा।
इस दौरान योग्य एवम अनुभवी आचार्य के सानिध्य में करवाया गया दुर्गा या चंडी यज्ञ विशेष कल्याणकारी रहेगा।
यह गुप्त नवरात्रि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और आसपास के इलाकों में विशेष रूप से मनाई जाती है। मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि के दौरान अन्य नवरात्रि की तरह ही पूजन करने का विधान है। इन दिनों भी 9 दिन के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा से नवमीं तक प्रतिदिन सुबह-शाम मां दुर्गा की आराधना करनी चाहिए।
गुप्त नवरात्रि में गुप्त विधि द्वारा नौ देवियों की पूजा गुप्त कार्य के लिए की जाती है। इस दौरान निराकार पूजा करने का विधान है। वर्तमान समय में राजनैतिक अस्थिरता को देखते हुए इस बार गुप्त नवरात्रि अनुष्ठान अधिक होने की संभावना है। कई जनप्रतिनिधि मंत्री बनने की चाह रखने अपने-अपने घरों में यज्ञ विधान कराएंगे। वैसे अनलॉक-1 में इन अनुष्ठानों के लिए वातावरण भी उनके अनुकूल बना है। ऐसे माहौल में की गई भक्ति-आराधना उपासकों को सिद्धि प्राप्त कराने में सहायक है।
गुप्त नवरात्रि में घट स्थापना कर कलश में ही सभी शक्तियों का आवाहन किया जाता है। इस आवाह्न पूजन में सिद्ध मंत्र जाप व कार्य के अनुसार जड़ी-बूटियों से हवन करने का महत्व है। सभी प्रकार की पुष्टता के लिए हमारे शास्त्रों में जड़ी-बूटियों से यज्ञादि करने का विधान बताया है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इन यज्ञों से वायु मंडल में व्याप्त कीटाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। श्रद्धालु अपने घर में रहकर गुप्त साधना कर नौ देवियों की कृपा पा सकते हैं।
गुप्त नवरात्र में होती है मानसिक पूजा
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि गुप्त नवरात्रि में मानसिक पूजा की जाती है। माता की आराधना मनोकामनाओं को पूरा करती है। गुप्त नवरात्र में माता की पूजा देर रात ही की जाती है। नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए भक्त को प्रतिपदा के दिन घट स्थापना करना चाहिए। भक्त को सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा करना चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं का पूजन करने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। यह नवरात्रि तंत्र साधना, जादू-टोना, वशीकरण आदि चीज़ों के लिए विशेष महत्व रखता है।
गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों तक साधक मां दुर्गा की कठिन भक्ति और तपस्या करते हैं। खासकर निशा पूजा की रात्रि में तंत्र सिद्धि की जाती है। इस भक्ति और सेवा से मां प्रसन्न होकर साधकों को दुर्लभ और अतुल्य शक्ति देती हैं। साथ ही सभी मनोरथ सिद्ध करती हैं।
क्या रखें सावधानी गुप्त नवरात्रि में
- -नौ दिनों तक ब्रह्मचर्य नियम का जरूर पालन करें।
- -तामसी भोजन का त्याग करें।
- -कुश की चटाई पर शैया करनी चाहिए।
- -निर्जला अथवा फलाहार उपवास रखें।
- -मां की पूजा-उपासना करें।
- -लहसुन-प्याज का उपयोग न करें।
- -माता-पिता की सेवा और आदर सत्कार करें।
- माघ नवरात्री उत्तरी भारत में अधिक प्रसिद्ध है, और आषाढ़ नवरात्रि मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में लोकप्रिय है.