गुरु गौरख नाथ जी रा छंद दोहा
थानक फळसे थापियो, वुओ आईपंथ वेख।
जालय जाय जगाडि़यो, अब झरडै आलैख।।
छंद त्रिभंगी
खट उरमी जीता, अंग अद्वीता, काळ वितीता थिर काया।
रैचक ते ताणै, कुंभक ठाणे, पूरक आंणै फिर पाया।
काया न कष्टै, कांम न इष्टै, संजम चैष्टे सील सती।
जम का डर भागे, भ्रम नह लागै, जागै गौरख नाथ जती।।
जिय जागै गौरख नाथ जती।
मछली उर आया, जोग कमाया, मींम मछंदर कहलाया।
सिसिया ते गोतम, बडो तपोतप, व्यास किरणी निपजाया।
गागर ते कुंभज, बली बुंबज, मृग ते श्रंगज जोग मती।
जम का डर भागै, भ्रम नह लागै, जागै गौरख नाथ जती।।
जिय जागै गौरख नाथजती
रिध सिध दोऊ बंधी, रहै जसंदी, सदा अनंदी गिरछाया।
मरगां जिम जोवै, परगट होवे, कबहु लुकोवै छिन माया।।
निंद्रा नह आवे, ताळ लगाव, जोग कमावै ध्यान थिति।
जम का डर भागै, भ्रम नह लागै, जागै गौरख नाथ जती।।
जिय जागै गौरख नाथ जती।
माछंदर वाळो, सिध सिघाळौ, बूढो बाळौ जुग वाळौ।
जीतो जमजाळौ, जगत निराळौ हुओ उजाळौ दिवाळौ।।
अनहद मे वाजै, सबद अग्राजै, रहे सदाजै जैतरती।
जम का डर भागै, भ्रम नह लागै, जागै गौरख नाथ जती।।
जिय जागै गौरख नाथ जती
मैं हूं अविणासी, वैर वणासी, बाळ अभ्यासी संन्यासी।
भूला सा भमता, एकत रमता, मन कूं दमता वनवासी।
गुरू गौरख सरणा, पार उतरणा, भवदध तरणा होय गती।
जम का डर भागै, भ्रम नह लागे, जागै गौरखनाथ जती।।
जिय जागै गौरखनाथ जती।।
महासिद्व गौरखनाथ जी की जय।
रचयिता: महाकवि मोडजी आसिया, भांडियावास
प्रेषक: मोहन सिह रतनू, ऐडमीन काव्य कलरव, जोधपुर
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